BJP की भव्य जीत: दिल्ली में 27 साल बाद सत्ता में वापसी, AAP को मिली भारी हार

सित॰, 27 2025

BJP की भव्य जीत और AAP की कड़ी हार

2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव ने राज्य के राजनीति मंच पर एक जटिल बदलाव लाया। BJP जीत दिल्ली विधानसभा का दावेदार बनकर उभरा, कुल 70 सीटों में से 48 सीटें सुरक्षित कीं और 27 वर्षों के बाद राष्ट्रीय राजधानी में फिर से सत्तासीन हो गया। इस जीत ने अतीत में 1993‑1998 के दौरान राज्य के मुख्यमंत्रियों को संभालने वाले सरकार को याद दिलाते हुए राजनीति का नक्शा उलट दिया।

दूसरी ओर, AAP को दशक‑लंबी शासन का अंत झेलना पड़ा। अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली पार्टी केवल 22 सीटें जीत पाई, जो उनके पूर्वकाल की तुलना में एक बड़ा झटका है। अतीत में जहाँ केजरीवाल के नाम पर AAP ने दिल्ली को "पारदर्शी सरकार" का झंडा फहराया था, अब वही चेहरा व्यक्तिगत तौर पर भी हार का सामना कर रहा है।

केजरीवाल खुद न्यू दिल्ली सीट से हार गए, जहाँ उन्होंने अपनी पार्टी के प्रमुख उम्मीदवार पर्थेश वर्मा को केवल 4,089 वोटों के अंतर से पीछे छोड़ दिया। इस हार ने न केवल केजरीवाल की व्यक्तिगत छवि को घातक क्षति पहुंचाई, बल्कि AAP के दावेदारों की रणनीति को भी सवालों के घेरे में डाल दिया।

दिखावे के पीछे कई और बड़े चेहरे गिर पड़े। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व मंत्रीsatendra जैन तथा सौरभ भरादव को भी अब मतदान तालिका से बाहर कर दिया गया। यह एक व्यापक अस्वीकृति को दर्शाता है, जहाँ दिल्ली के विभिन्न वर्ग के वोटर ने एक साथ AAP को पीछे धकेल दिया।

बाजार में तब तक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्य प्रचारक के रूप में अपनी आवाज़ को तेज़ी से बढ़ाया। उन्होंने AAP पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को बार‑बार दोहराया और इस संदेश को जनता तक पहुँचाया कि परिवर्तन की जरूरत है। यह अभियान न केवल निम्न‑आय वर्ग बल्कि मध्य‑वर्गीय नागरिकों के दिलों तक भी पहुँचा, जिससे भाजपा की लोकप्रियता में फिर से चमक आई।

वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावी रणनीति को संवारने में अहम भूमिका निभाई। भाजपा ने मुख्यमंत्रियों के दावेदार का नाम नहीं बताया, जिससे वे जीत के बाद अपनी पसंद के अनुसार उम्मीदवार को चुन सकें। अब संभावित नामों में पर्थेश वर्मा, तीन बार के MLA विजेंद्र गुप्ता और भाजपा के सांसद मनोज तिवारी शामिल हैं।

परिणाम और भविष्य की सम्भावनाएँ

परिणाम और भविष्य की सम्भावनाएँ

हालांकि कांग्रेस ने इस चुनाव में कोई सीट नहीं जीती, लेकिन उनके उम्मीदवारों ने कई क्षेत्रों में मतों का बड़ा हिस्सा लेकर आश्चर्यजनक भूमिका निभाई। 13 ऐसे क्षेत्रों में भाजपा का जीत का अंतर कांग्रेस के वोटों से अधिक था, जिससे यह सवाल उठता है कि कांग्रेस ने AAP को स्पॉइलर की भूमिका निभाई या नहीं। विशेषकर केजरीवाल की हार के बाद, कांग्रेस के उम्मीदवार ने 4,568 वोट हासिल किए, जबकि केजरीवाल की हारी हुई गिनती केवल 4,089 थी।

यह परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर भी असर डालेगा। AAP अपना राष्ट्रीय मंच खोते चल रहा है; अब वह केवल पंजाब में शासित है और दिल्ली में उनका अधिकतम प्रभाव नहीं रह गया। केजरीवाल के नेतृत्व में अब सवाल उठते हैं कि वह पार्टी को फिर से राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में सक्षम रहेंगे या नहीं।

कांग्रेस की स्थिति भी निराशाजनक बनी हुई है। 2020 में 4% वोट शेयर से बढ़कर 2025 में 6% तक पहुंची, परन्तु शून्य सीट जीत उनका असली असफलता दर्शाती है। दिल्ली जैसे शहरी केंद्र में उनकी पुनरुत्थान की राह अभी लंबी और कठिन दिखती है।

भाजपा की जीत का एक और बड़ा पहलू यह है कि अब केंद्र और दिल्ली की राज्य सरकार दोनों एक ही पार्टी के हाथों में होंगी। यह एकीकरण नीतियों के सुगम कार्यान्वयन, बुनियादी ढांचे के विकास और राष्ट्रीय राजधानी के कई योजनाओं में तेज़ी लाने की संभावना देता है। हालांकि, इससे सत्ता का एकत्रीकरण और विरोधियों के लिए वैकल्पिक आवाज़ें कम हो सकती हैं, जिसका लोकतांत्रिक संतुलन पर असर पड़ सकता है।

अगले कुछ महीनों में भाजपा के भीतर कौन प्रधानमंत्री के बाद मुख्यमंत्री पद संभालेगा, यह देखना दिलचस्प रहेगा। पर्थेश वर्मा, विजेंद्र गुप्ता या मनोज तिवारी में से कौन मुख्यमंत्री बनता है, यह उम्मीदवारों की पिछली कार्यवाही, वर्गीय समर्थन और पार्टी के आंतरिक समीकरणों पर निर्भर करेगा।

डेलहाई की राजनीति अब एक नए मोड़ पर है, जहाँ सत्ता का पुनर्संतुलन और विपक्षी पार्टियों की नई रणनीतियों का परीक्षण होगा। यह चुनाव न केवल दिल्ली के भविष्य को आकार देगा, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी नई दिशा तय करेगा।