जब हम पर्यावरण, धरती पर जीवन को समर्थन देने वाला प्राकृतिक तंत्र है, जिसमें वायु, जल, मिट्टी और जैव विविधता शामिल हैं. Also known as Environment, it shapes हमारे रोज़मर्रा के फैसलों को प्रभावित करता है। इस श्रेणी में आप वायु गुणवत्ता, हवा में मौजूद प्रदूषकों की मात्रा को दर्शाने वाला मापदंड. Alternate name Air Quality और पटाखे, तीव्र आवाज़ और चमक वाले छोटे विस्फोटक पदार्थ. Alternate name Firecrackers जैसे घटकों की बात करेंगे। यह विस्तृत दृष्टिकोण हमें दिखाता है कि पर्यावरण में वायु गुणवत्ता सीधे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, और पटाखों का प्रयोग धुंध के रूप में प्रदर्शित होता है।
वायु गुणवत्ता (AQI) के अंक जितने ज्यादा, उतनी ही गंभीर समस्या होती है। दिल्ली में दिवाली के बाद AQI 900 से ऊपर पहुंच गया, जो WHO मानकों से सात गुना ज्यादा है। ऐसा स्तर सांस लेने में तकलीफ, आँखों में जलन और एलर्जी को बढ़ा देता है। जब वायु में धूल, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड बढ़ते हैं, तो धुंध बनती है, जो सूरज की रोशनी को भी रोक देती है। इसलिए वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए सरकार ने पटाखों पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन उत्सव की चाह ने इसे बदल दिया।
पटाखे दीवाली की चमक का हिस्सा हैं, लेकिन उनका धुआँ वायुमंडल में लघु कण छोड़ता है। ये कण PM2.5 और PM10 के रूप में हवा में रह जाते हैं और तुरंत वायु गुणवत्ता को गिरा देते हैं। जब लोग पटाखा फोड़ते हैं, तो नगरपालिका के मॉनिटरिंग स्टेशन पर औसत से दो गुना अधिक कण रीडिंग देखी जाती है। इसका असर न केवल बड़े शहरों में, बल्कि आसपास के गाँवों में भी महसूस किया जाता है। इसी कारण कई नगर पालिकाएँ अब इलेक्ट्रॉनिक पटाखों को प्रोत्साहित कर रही हैं, जो धुआँ नहीं छोड़ते।
धुंध स्वयं वायु गुणवत्ता में गिरावट का परिणाम है। जब हवा में कणों की मात्रा बढ़ती है और मौसमी तापमान कम होता है, तो इन कणों के साथ जल बंध कर मोटी धुंध बनती है। धुंध सिर्फ दृश्यता को प्रभावित नहीं करती, बल्कि गहरी सांस में प्रवेश करने वाले कणों से फेफड़ों में जलन पैदा करती है। कई व्यक्तियों को एसेज्मा या ब्रॉन्काइटिस के लक्षण तीव्र महसूस होते हैं, खासकर बुजुर्ग और बच्चे। धुंध के दौरान हर राहगीर को मास्क पहनना और घर के बाहर कम समय बिताना सबसे सुरक्षित उपाय है।
दिवाली जैसी बड़ी घटनाएँ पर्यावरण को कैसे प्रभावित करती हैं, इस बारे में समझना जरूरी है। जब हम उत्सव में पटाखों से लाड़ें, तो वायु गुणवत्ता में अचानक गिरावट आती है और धुंध जल्दी बनती है। सरकार के नियमों को अनदेखा करने से न केवल स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि दीर्घकालिक पर्यावरणीय क्षति भी होती है। इस कारण कई NGOs ने जागरूकता अभियान चलाए हैं, जिसमें लोग इलेक्ट्रॉनिक पटाखे या रोशनियों से उत्सव मनाने को प्रेरित होते हैं। इन प्रयासों से शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार की आशा बनी रहती है।
अब आप इस श्रेणी में पढ़ेंगे कि कैसे पर्यावरण, वायु गुणवत्ता, पटाखे और धुंध आपस में जुड़े हुए हैं, और कौन‑से कदम उठाए जा सकते हैं। नीचे प्रस्तुत लेखों में वर्तमान स्थितियों, सरकारी नीतियों और व्यक्तिगत उपायों की विस्तृत जानकारी मिलेगी, जिससे आप अपनी दैनिक जिंदगी में पर्यावरण‑सुरक्षित विकल्प अपना सकें।
नई दिल्ली की वायु गुणवत्ता दिवाली के बाद गम्भीर रूप से गिर गई है, जिसमें वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 900 के ऊपर पहुंच गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से साथ ही यह प्रदूषण का स्तर सात गुना ज्यादा है। अधिकारियों के द्वारा पारंपरिक पटाखों पर प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन इसके बावजूद पर्यावरणीय संकट को नजरअंदाज करते हुए लोग इनका इस्तेमाल करते हैं।