दिल्ली में दिवाली पर प्रदूषण की गंभीर स्थिति
हर साल दिवाली की रात देश भर में उत्साह फैलता है, लेकिन यह खुशी की चमक पूरा देश नहीं देखता। दिल्ली, जो दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार की जाती है, की हवा में दीवाली के बाद खतरनाक धुंध छा जाती है। साल 2017 से ही अधिकारियों ने पारंपरिक पटाखों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है। इसका उद्देश्य वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को कम करना था। फिर भी, हर साल दीवाली के बाद वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) नए उच्चतम स्तर तक पहुंच जाता है।
पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी
वर्तमान विषम परिस्थितियों के बावजूद, स्थानीय लोग पटाखों का उपयोग करते रहते हैं, जिसकी वजह से प्रदूषण के स्तर में बेतहाशा इजाफा होता है। सरकारी दिशा-निर्देशों के बावजूद, कुछ लोगों के उत्सव की धुंध ने दिल्ली की कठिनाईयों को और भी बढ़ा दिया। विशेषज्ञ सुझाते हैं कि लोग अधिक जिम्मेदार बनें और पर्यावरण हितैषी विकल्पों का चयन करें।
स्वास्थ्य पर पड़ता प्रभाव
प्रदूषण के इस उच्च स्तर ने स्वास्थ्य संकट को और भी विस्तृत बना दिया है। इनमें शामिल हैं – गंभीर श्वसन समस्याएँ, हृदय रोग, और लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से कैंसर का जोखिम। लाखों भारतीय हर साल वायु-प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के चलते अपनी जान गंवाते हैं। वायु में मौजूद सूक्ष्म कणिकाओं के कारण, जो शरीर में प्रवेश कर गंभीर हानि पहुँचा सकते हैं, स्थिति और भी जटिल हो जाती है।
प्रदूषण के अन्य कारण
दिवाली की रात के अलावा, राजधानी के प्रदूषण की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती। सर्दियों के मौसम में समीपवर्ती राज्यों में पराली जलाने से निकलने वाले धुएं ने दिल्ली की हवा को विषाक्त बना दिया है। इसके अलावा, उद्योगों के प्रदूषण नियंत्रण उपायों की कमी और बिजली उत्पादन के लिए कोयले के व्यापक उपयोग से भी प्रदूषण में योगदान मिलता है।
समाधान की आवश्यकता
समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में बेहतर नीतिगत उपायों के साथ ही, स्थानीय लोगों को भी अपनी भूमिका को समझना होगा। स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने, और सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देने जैसे उपाय गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है। शिक्षण संस्थानों और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन भी इस दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है।
प्रामी उपायों की दिशा में
सरकार द्वारा प्रचारित वैकल्पिक विकल्प जैसे इलेक्ट्रॉनिक आतिशबाज़ी और लाइट डिस्प्ले इस दिशा में सहायक हो सकते हैं। प्रयास यह होना चाहिए कि लोगों को सामान्य पटाखों के उपयोग से दूर करके, पर्यावरण हितैषी विकल्पों की ओर मोड़ा जाए।