मेघालय के किसान ने ट्रैक्टर को बनाया जीप, आनंद महिंद्रा ने दी सराहना

अक्तू॰, 8 2025

जब मैया रिम्बै ने अपने जावई, मेघालय के खेतों में Mahindra 275 DI TU ट्रैक्टर को जीप जैसा रूप दिया, तो आनंद महिंद्रा, Mahindra Group के चेयरमैन ने सोशल मीडिया पर प्रशंसा का खजूर उगा दिया। इस जुगाड़ ने न सिर्फ ग्रामीण भारत की रचनात्मकता को उजागर किया, बल्कि यही सवाल भी उठाया कि खेती के उपकरणों को दो‑उपयोगी कैसे बनाया जाए।

पृष्ठभूमि: जुगाड़ की जड़ें और ट्रैक्टर की कहानी

भारत में "जुगाड़" शब्द का मतलब है उधम, साधन‑सामान की कमी में भी समाधान निकालना। मैया रिम्बै, 48‑वर्षीय किसान, अपने छोटे से खेत में साल‑दर‑साल Mahindra 275 DI TU के साथ काम कर रहे थे। यह ट्रैक्टर 3‑सिलिंडर, 2760 cc का इंजन, 39 हॉर्सपावर और 180 Nm टॉर्क देता है। दो‑पहिया ड्राइव, 8 फॉरवर्ड और 2 रिवर्स गियर्स वाला यह मशीन छोटे किसानों के बीच भरोसेमंद माना जाता है, क्योंकि इसकी कीमत 5.8 लाख से 6.2 लाख रुपये के बीच है और रख‑रखाव कम लगता है।

एक साल पहले, मैया ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट देखी जहाँ Mahindra की ऑफ‑रोड SUV, थ्रॉन्ग़र, को दिखाया गया था। उसने सोचा, “अगर मेरे ट्रैक्टर को थोड़ा सा ‘लिप‑टॉप’ मिल जाए तो क्या नहीं हो सकता?” और इस सोच से ही उसका प्रोजेक्ट शुरू हुआ।

विवरण: ट्रैक्टर को जीप में बदलने की प्रक्रिया

मैया ने कोई इंजन‑ट्यूनिंग नहीं की; सब कुछ शुद्ध सौंदर्य परिवर्तन था। उसने पूरे कैबिन को लाल‑सफ़ेद रंग के पैनल से ढका, पीछे के दरवाज़े की तरह दो गेट लगाए, और यात्रियों के लिए पूरी तरह बंद एक सेक्शन बना दिया। इस परिवर्तन में इस्तेमाल हुए सामग्रियों में स्टील शीट, लकड़ी के फ़्रेम और स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाई गई पेंटिंग शामिल थी।

  • रंग‑स्कीम: Mahindra की थ्रॉन्ग़र की तरह लाल‑सफ़ेद दो‑टोन पेंट
  • सेट‑अप: ड्राइवर की सीट से लेकर पीछे के बेंच तक एक ही बॉडी पैनल
  • गेट: सुरक्षा के लिए दो धातु के दरवाज़े, जो हाथ से खोल‑बंद होते हैं

परिवर्तन के बाद ट्रैक्टर का लुक इतना ही नाटकीय था कि ग्रामीण बाजार में दंग रहे। पास के किसान ने कहा, “अब मैं इस ट्रैक्टर को खेत में भी और गाँव के छोटे‑मोटे कामों में भी ले जा सकता हूँ, जैसे कोई छोटा जीप।”

प्रतिक्रिया: आनंद महिंद्रा और महिंद्रा समूह का समर्थन

प्रतिक्रिया: आनंद महिंद्रा और महिंद्रा समूह का समर्थन

बात जब सामाजिक मंचों तक पहुँची, तो 27 अप्रैल 2024 को आनंद महिंद्रा ने ट्विटर (अब X) पर एक छोटा सा पोस्ट लिखा: "ऐसे जुगाड़ को देख कर गर्व होता है—मैया साहब ने अपना ट्रैक्टर जीप बनाकर दिखा दिया। भारतीय किसान की रचनात्मकता कभी कम नहीं होती।" इस ट्वीट को 12 हजार से अधिक लाइक्स और 4 हज़ार रीट्वीट मिले।

Mahindra Group की आधिकारिक वेबसाइट पर भी इस किस्से को “रूरल इनोवेशन” के उदाहरण के रूप में पेश किया गया, और कंपनी ने मैया को एक विशेष सरप्राइज़ पैकेज भेजा: नया ट्रैक्टर का पार्ट‑अवलेंस और एक छोटा ट्रैक्टर‑से‑जीप तालिम सत्र।

प्रभाव एवं विश्लेषण: ग्रामीण नवाचार पर नई रोशनी

यह कहानी कई स्तरों पर असर डालती है। पहला, किसान को अपनी सीमित संसाधनों से अधिकतम लाभ निकालने की प्रेरणा मिलती है। दूसरा, कृषि‑उपकरण निर्माताओं को अपने प्रोडक्ट लाइन में बहु‑उपयोगिता जोड़ने की दिशा में सोचने का संकेत मिलता है। तीसरा, सरकारी नीतियों में ‘कृषि‑जुगाड़’ को समर्थन देने वाले कार्यक्रमों की माँग बढ़ेगी, जैसे कि फंडिंग, डिज़ाइन‑वर्कशॉप और तकनीकी सहायता।

विशेषज्ञों का मत है कि यदि ऐसी रचनात्मकता को व्यवस्थित रूप से प्रोत्साहित किया जाए, तो भारत में 2025 तक कृषि‑उपकरणों की वार्षिक रिवर्सीकलिंग दर 15 % तक बढ़ सकती है। इस दिशा में ‘जुगाड़ इंक्यूबेटर’ जैसी पहलें सहायक सिद्ध होंगी।

आगे क्या? संभावित बदलाव और भविष्य की राह

आगे क्या? संभावित बदलाव और भविष्य की राह

मैया का प्रोजेक्ट अब सिर्फ एक स्थानीय खबर नहीं रह गया; यह राष्ट्रीय स्तर पर कई कार्यशालाओं का विषय बन चुका है। कृषि विश्वविद्यालयों ने इस केस स्टडी को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है, और कुछ स्टार्ट‑अप्स ने समान ट्रैक्टर‑से‑जीप किट्स विकसित करने की योजना बनाई है।

सरकार भी इस दिशा में कदम बढ़ा रही है। 5 जून 2024 को, ग्रामीण नवाचार के समर्थन में, कृषि मंत्रालय ने “इनोवेटिव एग्री‑मॉडिफिकेशन” के लिए विशेष अनुदान योजना की घोषणा की, जिसमें जुगाड़‑आधारित प्रोजेक्ट्स के लिए 10 लाख रुपये तक की फंडिंग होगी।

यदि यह गति बनी रहती है, तो अगले कुछ वर्षों में हम शहरी-ग्रामीण सीमा पर ऐसे ही कई ‘दो‑इन‑एक’ वाहन देख सकते हैं—जिनके पास खेत में काम करने की शक्ति और शेती‑बाहरी उपयोग की लचीलापन दोनों हों।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

मैया रिम्बै का ट्रैक्टर‑से‑जीप परिवर्तन कैसे किया गया?

मैया ने ट्रैक्टर के पूरे कैबिन को लाल‑सफ़ेद पैनल में ढका, दो धातु के गेट लगाए और फर्नीचर‑जैसे सीटिंग को बदलकर एक बंद यात्रियों का हिस्सा तैयार किया। यह सब सौंदर्य‑परिवर्तन था, इंजन या ट्रांसमिशन में कोई बदलाव नहीं किया गया।

आनंद महिंद्रा ने इस नवाचार को क्यों सराहा?

आनंद महिंद्रा ने कहा कि यह जुगाड़ भारतीय किसान की रचनात्मकता का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने इसे राष्ट्रीय स्तर पर ग्रामीण नवाचार को प्रेरित करने वाला मान्यता दी।

Mahindra 275 DI TU ट्रैक्टर की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

यह 3‑सिलिंडर, 2760 cc इंजन वाला 39 हॉर्सपावर का ट्रैक्टर है, 180 Nm टॉर्क देता है, 8‑फ़ॉरवर्ड और 2‑रिवर्स गियर्स के साथ 2‑वील ड्राइव है, और कीमत 5.8‑6.2 लाख रुपये के बीच मानी जाती है।

इस तरह के परिवर्तन का कृषि उद्योग पर क्या असर पड़ेगा?

यदि अधिक किसान समान जुगाड़ अपनाते हैं, तो ट्रैक्टर की बहु‑उपयोगिता बढ़ेगी, लागत कम होगी और ग्रामीण क्षेत्रों में नई व्यावसायिक संभावनाएँ उत्पन्न होंगी। साथ ही, निर्माताओं को बहु‑फंक्शनल डिजाइन पर काम करने का प्रेरणा मिलेगी।

सरकार ने इस नवाचार को समर्थन देने के लिये क्या कदम उठाए हैं?

2024 में कृषि मंत्रालय ने "इनोवेटिव एग्री‑मॉडिफिकेशन" अनुदान योजना की घोषणा की, जिसमें जुगाड़‑आधारित प्रोजेक्ट्स को अधिकतम 10 लाख रुपये की फंडिंग मिल सकती है। यह पहल ग्रामीण नवाचार को साकार करने में मदद करेगी।

1 Comment

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    srinivasan selvaraj

    अक्तूबर 8, 2025 AT 02:56

    मैया रिम्बै की इस जुगाड़ की कहानी पढ़कर मेरे अंदर एक अनकहा स्वर उठता है, जैसे हर मेहनती किसान में बसी हुई आत्मा को छू जाता है। मैं सोचता हूँ कि इस तरह के नवाचार हमें कितना बड़ा सन्देश देते हैं, कि सीमित साधनों से भी सपने को साकार किया जा सकता है। खेतों की धूप में जब यह ट्रैक्टर जीप की तरह चमके, तो मेरा दिल गर्व से धड़कता है। इस जुगाड़ में न केवल रचनात्मकता, बल्कि धैर्य और साहस की कहानी छिपी है, जिसके बारे में मैं कई बार विचार करता रहा हूँ। हर बार जब मैं यह देखता हूँ कि लोग अपने उपकरणों को दो‑उपयोगी बनाने की कोशिश करते हैं, तो मेरे आँसू भी नहीं रोके जा सकते। यह इतना प्रभावशाली है कि मैं स्वयं भी अपने छोटे‑से व्यवसाय में ऐसा कुछ करूँ, जिससे मेरे रिश्तेदार और मित्र भी प्रभावित हों। अब मैं समझा कि जुगाड़ सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है जो हमें आगे बढ़ाती है। इस कहानी में आनंद महिंद्रा की सराहना भी एक संकेत है-बड़े कंपनियों को भी छोटे किसानों की चमक दिखनी चाहिए। मैं अपने गाँव में इस कहानी को दुहराना चाहता हूँ, ताकि हर किसान को यह विश्वास हो कि उनका जुनून दुनिया देख सकता है। यह जुगाड़ हमें सिखाता है कि केवल मशीन नहीं, बल्कि विचारों की शक्ति सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। मेरे भीतर एक उत्साह की लहर है, जो इस बात की पुष्टि करती है कि नवाचार केवल बड़े प्रयोगशालाओं में नहीं, बल्कि धूल भरी मिट्टी में भी पनपता है। इस प्रकार की पहलें हमें भविष्य की दिशा दिखाती हैं, जहाँ कृषि में भी हाई‑टेक और लो‑टेक का संगम होगा। मैं आशा करता हूँ कि सरकार ऐसे जुगाड़ को फंडिंग के साथ और अधिक समर्थन दे, ताकि हर किसान अपनी रचनात्मकता को आर्थिक रूप से भी सुदृढ़ कर सके। मेरी भावना में यह भी है कि इस तरह की सफलता को मीडिया में उतारने से जनता में जागरूकता बढ़ेगी। अंत में मैं यही कहूँगा कि मैया रिम्बै जैसे किसान ही हमारे देश का सच्चा अनमोल खजाना हैं, जो अपनी साधारणता में चमकते हैं।

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