स्किज़ोफ्रेनिया का असर और मां की भयावह हरकत
मुंबई के बांद्रा ईस्ट में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसने हर किसी को हैरानी में डाल दिया। 36 साल की अभिलाषा, जो बीते 18 महीनों से स्किज़ोफ्रेनिया से जूझ रही थी, उस पर अपने ही 10 साल के बेटे सर्वेश की हत्या का आरोप है। उसने मोबाइल फोन के चार्जर की तार का इस्तेमाल किया। इस वारदात के वक्त उसका व्यवहार सामान्य से अलग था। पास के कमरे में 14 वर्षीय बेटी ने मां के बदलाव को महसूस कर पिता को खबर दी।
पिता, जो महाराष्ट्र स्टेट एक्साइज डिपार्टमेंट में काम करते हैं, जब तक पहुंचे—दरवाजा बंद था। आखिरकार पुलिस को बुलाया गया और जब दरवाजा तोड़ा गया, मां के गोद में बेटा निर्जीव मिला, गर्दन में चार्जर की डोरी लिपटी हुई थी। महिला तब भी अपने किये से पूरी तरह अनजान दिखी, बेहद बेचैन और असामान्य। पुलिस ने उसे हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया। मगर, मानसिक स्थिति को देखते हुए अब जांच इस ओर बढ़ रही है कि क्या उसे जेल भेजा जाएगा या हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाएगा।

स्किज़ोफ्रेनिया: शुरुआती संकेत और परिवार में नार्मल दिखने वाला तनाव
स्किज़ोफ्रेनिया कोई आम बीमारी नहीं है – इसमें इंसान कई बार असलियत और कल्पना के बीच फर्क नहीं कर पाता। डॉ. हरीश शेठी, जो मुंबई के जाने-माने मानसिक रोग विशेषज्ञ हैं, उन्होंने साफ कहा कि इसमें अकसर मरीज को भ्रम (हैलुसिनेशन) होते हैं, वो आवाज़ें सुनते या चीज़ें देखते हैं जो असल में होती नहीं। भारत जैसे समाज में लोग मानसिक रोगों की खामोशी से अनदेखी कर बैठते हैं, घरवाले भी परेशानियों को सिर्फ झगड़ा या मूड स्विंग समझकर टाल देते हैं। चेतावनी के कुछ सिंपल संकेत होते हैं—बात-बात पर गुस्सा आना, अचानक खुद में खो जाना, बेवजह संदिग्ध होना या डर लगना। ऐसे लक्षण अगर लगातार दिखें तो परिवार वालों को तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए।
परिवार ने बताया कि अभिलाषा की कोई पहले से हिंसक प्रवृत्ति नहीं थी, लेकिन घर में आए दिन बहसें होती थीं। यह घटना दिखाती है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही कितनी भारी पड़ सकती है। पुलिस ने महिला को रिमांड पर लिया है, लेकिन डॉक्टरों की रिपोर्ट के बाद ही तय होगा कि कोर्ट उसमें कितनी सजा दे पाएगा। भारत के कानून में मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए सजा में छूट की संभावना है।
मुंबई पुलिस और डॉक्टर्स अब यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वारदात के समय महिला की मानसिक स्थिति क्या थी—क्या वो सचमुच अपने होश में थी या बीमारी ने दिमागी काबू पूरी तरह छीन लिया था। एक्सपर्ट्स काउंसिलिंग के साथ-साथ विस्तृत मानसिक मुल्यांकन पर जोर दे रहे हैं, ताकि आगे ऐसी घटनाएं रोकी जा सकें।