जब रमाेश्वर लाल डूडी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान विधानसभा के पूर्व विपक्षी नेता का बिकानेर में 4 अक्टूबर 2025 को निधन हुआ, तो राजनीतिक परिदृश्य में अचानक खलबली मच गई। 62 वर्ष की आयु में दो साल से अधिक समय तक कोमा में रहे डूडी का निसांत उनके समर्थकों और विपक्षी दल दोनों के लिये ‘अत्यधिक दिल दहला देने वाला’ कहा जा रहा है।
पृष्ठभूमि और प्रारम्भिक जीवन
जुलाई 1, 1963 को बिकानेर के बिर्मसर गाँव में जन्मे डूडी ने 1995 में नोकहा में पंचायत समिति के प्रधान के रूप में सार्वजनिक सेवा की शुरुआत की। स्थानीय स्तर पर उनकी पहुँच और किसानों के प्रति संवेदनशीलता जल्दी ही पार्टी के भीतर सराही गई। वहीँ से उन्होंने राजस्थान विधान सभा के लिये चुनावी मैदान में कदम रखा।
राजनीतिक यात्रा का प्रमुख चरण
डूडी ने 1999 से 2004 तक बिकानेर से लोक सभा के सदस्य के रूप में देश मंच पर भारतियों की आवाज़ को प्रस्तुत किया। 2008 में उन्होंने फिर से राज्य स्तर पर नोकहा से विधायी निर्वाचित होकर अपना आधार मजबूत किया। 2013‑2018 के बीच जब भाजपा ने राजस्थान में शासन किया, तब वे विपक्षी दल के प्रमुख चेहरा बन कर सार्वजनिक जाँच में चमके।
बीमारी, कोमा और अंतिम क्षण
अगस्त 2023 में मस्तिष्क रक्तस्राव (स्ट्रोक) से ग्रस्त होकर डूडी को दो साल से अधिक समय तक कोमा में रखा गया। उनके परिवार ने लगातार उपचार के लिए प्रयास किए, परन्तु 4 अक्टूबर को बिखाने में उनके श्वास‑त्याग ने सभी को दीवाना कर दिया। उनके निधन के बाद सुषीला डूडी, जो वर्तमान में कांग्रेस की विधायक हैं, ने परिवार की ओर से शोक प्रकट किया।

पार्टी और नेताओं की प्रतिक्रियाएँ
राष्ट्रपति मल्लिकार्जुन खड़गे ने X (ट्विटर) पर "एक अत्यंत दुखद क्षण" कहा और डूडी को "अपरिवर्तनीय नुकसान" बताया। उन्होंने कहा, “वह एक जमीनी नेता थे, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी किसानों के कल्याण के लिये समर्पित की।” इस बात पर राहुल गांधी ने भी अपनी पीड़ित भावनाएँ व्यक्त कीं।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत ने "निजी और पार्टी दोनों स्तरों पर बहुत बड़ा नुकसान" कहा। वे विशेष रूप से डूडी के किसान‑हितैषी कार्यों की सराहना करते हुए कहा, “उनका हर कदम किसान के हित में था।” राज्य के कांग्रेस प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा, विरोधी नेता तिका राम जुल्लि तथा विधानसभा के अध्यक्ष वसुदेव देवनानी ने भी शोक मैसेज भेजे।
विरासत और प्रभाव
डूडी को अक्सर "कृषि नेता" के रूप में याद किया जाता है। नोकहा से लेकर बिकानेर तक उन्होंने निरंतर किसानों के मुद्दों को उठाया, जल संरक्षण, गेहूँ की कीमत और ऋण मुहैया कराने के लिये कई नीतियों का प्रस्ताव रखा। उनका राजनैतिक अंदाज़ बहुत सरल था – सभा में सीधे लोग‑जन के सामने अपने विचार रख कर निर्णय लेना। यह शैली आज‑कल के कई युवा राजनेताओं के लिये एक मॉडल बन गई है।
उनकी पत्नी सुषीला की सक्रियता से डूडी के काम को जारी रखने की उम्मीद है। वह अब भी कांग्रेस के भीतर अपनी आवाज़ उठाते हुए किसान आंदोलन एवं सामाजिक न्याय के लिये काम कर रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि डूडी के बिना कांग्रेस को बिखरे हुए वोट‑बैंकों को फिर से जोड़ना कठिन हो सकता है, खासकर बिकानेर के ग्रामीण क्षेत्रों में।
आगे क्या हो सकता है?
डूडी के निधन के बाद बिकानेर में कांग्रेस में सत्ता पुनर्गठन की संभावना बनी हुई है। पार्टी ने अभी तक नई रणनीति की घोषणा नहीं की है, परन्तु स्थानीय स्तर पर नई युवा चेहरे उभरने की आशा है। राजनैतिक दृश्य में इस बदलाव से आगामी विधानसभा चुनावों के परिणाम में असर पड़ सकता है।
- मुख्य तथ्य
- रमाेश्वर लाल डूडी का निधन 4 अक्टूबर 2025 को बिकानेर में हुआ।
- वे 62 वर्ष के थे, दो साल से अधिक कोमा के बाद मृत्यु हुई।
- 1999‑2004 में बिकानेर से लोकसभा सदस्य, 2013‑2018 में विपक्षी नेता।
- कृषि मुद्दों में उनका योगदान आज तक याद किया जाता है।
- उनकी पत्नी सुषीला डूडी वर्तमान में कांग्रेस की विधायक हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
डूडी के निधन का बिखाने की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा?
डूडी ग्रामीण समर्थन के लिये महत्वपूर्ण थे। उनकी अनुपस्थिति में कांग्रेस को बिखाने के ग्रामीण जनता से फिर से भरोसा जीतने के लिये नई पहल करनी पड़ेगी, अन्यथा आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर हो सकता है।
क्या सुषीला डूडी इस खालीपन को भरेंगी?
सुषीला डूडी पहले से ही कांग्रेस विधानसभा सदस्य हैं और किसानों के मुद्दों पर सक्रिय हैं। वे अपने पति की परम्परा को जारी रखेंगे, परन्तु पार्टी की आंतरिक गतिशीलता से उनका प्रभाव निर्धारित होगा।
डूडी के जीवन से कौन‑से प्रमुख सीख मिलती हैं?
एक नेता को धरती से जुड़े रहना चाहिए, खासकर किसानों के लिये सच्ची आवाज़ बनना चाहिए। डूडी ने यह दिखाया कि स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय मंच तक पहुँचने के लिये निरंतर सेवा और सच्ची प्रतिबद्धता आवश्यक है।
बिखाने में कांग्रेस का भविष्य क्या है?
डूडी के बाद पार्टी को नई नेतृत्व पहचान बनानी होगी। बिखाने में युवा अधिकारियों को सभ्यतापूर्ण नेतृत्व दिखाना पड़ेगा, विशेषकर कृषक वर्ग के प्रति नीतियों को सुदृढ़ करके।
Aayush Sarda
अक्तूबर 5, 2025 AT 05:23रमाेश्वर लाल डूडी का निधन राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा झटका है।
उनका जीवन टैटा से शुरू होकर गाँव की मिट्टी में गहराई तक जुड़ा रहा।
वे हमेशा किसानों की समस्या को अपनी पहली प्राथमिकता मानते रहे।
नोकहा से लेकर बिकानेर तक उनका जमीनी संपर्क लोगों के दिल में जगह बना गया था।
उन्होंने संसद में भी कृषक हित में कई बिलों को धकेला।
उनके द्वारा प्रस्तावित जल संरक्षण योजना आज भी कई गांवों में लागू है।
स्थानिक पेंशन और कर्ज माफी के उनके कदमों ने गरीब परिवारों को राहत दी।
विरोधी पार्टी भी उनके ईमानदारी को सराहती थी, भले ही राजनीतिक मतभेद रहे।
उनका शांत स्वभाव और साफ बोलना उन्हें भीड़ में अलग बनाता था।
दो साल का कोमा उनके संघर्ष को और भी कड़ा बनाता है।
उनके परिवार के साथ जुड़े सुषीला जी ने अब पार्टी में नई ऊर्जा लाई है।
युवा नेता उनके अनुकरणीय कार्यों को मॉडल मानकर आगे बढ़ रहे हैं।
कांग्रेस को अब उनके बिना ग्रामीण वोट बैंक को संभालना मुश्किल होगा।
बिखाने में नई रणनीति बनानी पड़ेगी, नहीं तो चुनावों में बड़ा नुकसान हो सकता है।
अंत में, हम सभी को उनका योगदान याद रहेगा और उनका नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाएगा।