रतन टाटा: भारतीय व्यापार जगत के दिग्गज जिन्होंने टाटा ग्रुप को बनाया वैश्विक स्तर पर मशहूर

अक्तू॰, 11 2024

भारतीय उद्योग में रतन टाटा की बेमिसाल यात्रा

रतन टाटा का नाम जो भारतीय उद्योग जगत में सम्मान और प्रेरणा का प्रतीक बन चुका है, अब इतिहास के पन्नों में अमर हो गया है। 09 अक्टूबर 2024 को, 86 वर्ष की आयु में मुंबई में उनके निधन ने उद्योग और समाज में व्यापक हंगामा खड़ा कर दिया। टाटा संस के चेयरमैन, नटराजन चंद्रशेखरण ने उनके निधन की पुष्टि की और उन्हें एक 'मित्र, मेंटर और मार्गदर्शक' के रूप में याद किया। हालाँकि, निधन का कारण सार्वजनिक नहीं किया गया।

रतन टाटा को 'उद्योगपति का मसीहा' कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने टाटा ग्रुप को एक सीमित व्यापारिक घराने से एक वैश्विक कंपनी के रूप में बदला। टाटा ग्रुप के अधीन लगभग 100 कंपनियाँ आती हैं, जिनमें भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता, सबसे बड़ी निजी स्टील कंपनी और प्रमुख आईटी सेवा फर्म शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर 3,50,000 से अधिक लोगों को रोजगार देने वाली इस कंपनी का नेतृत्व रतन टाटा ने अपने कुशल दृष्टिकोण से किया।

टाटा का नौकायान और अधिग्रहण का रणनीतिक खेल

रतन टाटा की उपलब्धियों में सबसे उल्लेखनीय 2008 में जैगुआर और लैंड रोवर का 2.3 बिलियन डॉलर में फोर्ड से अधिग्रहण है, जिसने दुनिया को उनकी व्यापारिक सूझ-बुझ की झलक दिखाई। इस अधिग्रहण ने कंपनी की स्थिति को संजीवनी प्रदान की और टाटा मोटर्स को वैश्विक स्तर पर अधिक मान्यता दी। टाटा ने एयर इंडिया जैसी एयरलाइन की नींव 1932 में रखी थी और फिर 2021 में इसका पुनः अधिग्रहण उन्होंने किया।

इसके अलावा, उन्होंने नैनो नामक कार को लांच किया, जो एक लोकप्रिय लेकिन अल्पकालिक उत्पाद साबित हुआ। इसने भारतीय उपभोक्ताओं के लिए किफायती और सुरक्षित परिवहन का एक नया विकल्प प्रस्तुत किया।

नेतृत्व और परोपकार का मिश्रण

अपने व्यापारिक कौशल के अलावा, रतन टाटा परोपकार के क्षेत्र में भी अग्रणी थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 'दृढ़ संकल्पों का विजनरी नेता' कहा, जिसने समाज के उत्थान के लिए अनवरत कार्य किया। टाटा द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के क्षेत्र में किए गए प्रयास समाज के विभिन्न वर्गों के लिए वरदान साबित हुए।

गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने भी उनके अंतिम मिलन की यादें साझा कीं और उन्हें प्रेरणास्पद बताया। टाटा के साथ उनकी अंतिम बातचीत में व्यापारिक नेतृत्व की नई धाराओं पर चर्चा हुई। पिचाई ने उन्हें भारत में आधुनिक व्यापारिक नेतृत्व विकसित करने में सहायक बताया।

रतन टाटा की शिक्षाओं और सिद्धांतों का पालन करने वाले उनके संगठनों के अधिकारी कहते हैं कि टाटा का दृष्टिकोण केवल व्यापारिक लाभ तक सीमित नहीं था, बल्कि यह समाज को बेहतर बनाने की उनकी भावना तक फैला हुआ था।

शिक्षा और नेतृत्व का तालमेल

रतन टाटा का वास्तुकला में स्नातक, कॉर्नेल विश्वविद्यालय से किया गया। टाटा परिवार की विरासत को संभालते हुए रतन टाटा ने 1991 में जे.आर.डी. टाटा के स्थान पर टाटा संस के चेयरमैन का पद संभाला। उनकी प्रक्रियागत सूझ-बुझ ने उन्हें न केवल टाटा ग्रुप बल्कि पूरे उद्योग जगत में एक अद्वितीय पहचान दिलाई। 2016 में वे एक अंतरिम अवधि के लिए पुनः चेयरमैन बने जब सायरस मिस्त्री को हटा दिया गया। 2017 में चंद्रशेखरण के चेयरमैन बनने के साथ ही रतन टाटा ने पुनः अपने सेवानिवृत्ति का रुख किया।

रतन टाटा के साहसिक नेतृत्व और सामाजिक कार्यों से टाटा ग्रुप ने न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक स्तर पर व्यापारिक परिदृश्य में एक अमिट छाप छोड़ी है। उनका योगदान न केवल उद्योग जगत के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो समाज के उत्थान के लिए कार्यरत है।