आयकर रिटर्न – आसान गाइड और फ़ायदे

जब आप आयकर रिटर्न, वर्षाना आय का विवरण जो भारत सरकार को इलेक्ट्रॉनिक या कागज़ी रूप में जमा किया जाता है तैयार कर रहे होते हैं, तो ईआरटी (इलेक्ट्रॉनिक रिटर्न ट्रीटमेंट), ऑनलाइन फाइलिंग का आधिकारिक प्लेटफ़ॉर्म और वित्तीय वर्ष, अप्रैल से अगला मार्च तक की 12‑महीने की आय अवधि की समझ अनिवार्य है। साथ ही कटौती, धारा 80 के तहत मिलने वाली टैक्स छूट को ठीक‑ठीक जानना रिफंड बढ़ा सकता है और टैक्स बोझ घटा सकता है। इसलिए हम नीचे इस प्रक्रिया के हर अहम हिस्से को सरल भाषा में तोड़‑फोड़ कर बताएँगे।

आयकर रिटर्न फाइल करने का मुख्य कारण है कानूनी दायित्व को पूरा करना, लेकिन इसका फायदा सिर्फ दण्ड से बचना नहीं। समय सीमा के भीतर फाइलिंग करने से ब्याज‑मुक्त रिफंड, बेहतर क्रेडिट स्कोर और भविष्य में लोन के लिए आसान स्वीकृति जैसी अतिरिक्त सुविधाएँ मिलती हैं। आयकर अधिनियम के अनुसार, यदि आपका सकल आय ₹2.5 लाख से ऊपर है तो फाइल करना अनिवार्य है; न गरे तो देर‑से‑फाइल करने पर ₹5,000 तक का जुर्माना लग सकता है। इस कारण से कई लोग “आख़िरी मिनट” तक इंतज़ार करते हैं, लेकिन अंत में दण्ड और चक्रवृद्धि ब्याज की समस्या उठती है।

डिडक्शन का सही उपयोग रिटर्न को आकर्षक बनाता है। धारा 80C में प्रीमियम, पीएफ, एलआईसी, राष्ट्रीय बचत बाँड आदि विकल्प शामिल हैं, जिनकी कुल सीमा ₹1.5 लाख तक है। धारा 80D में स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम, धारा 80E में शिक्षा ऋण ब्याज, और धारा 24(b) में होम लोण के ब्याज की कटौती भी उपलब्ध है। यदि आप इन सभी को सही क्रम में सूचीबद्ध कर लेते हैं, तो टैक्सेबल इनकम काफी घट सकती है। उदाहरण के तौर पर, यदि आपका कुल आय ₹10 लाख है और आपने 80C, 80D तथा 24(b) के तहत कुल ₹2 लाख की कटौतियाँ ली हैं, तो आपका टैक्सेबल इनकम केवल ₹8 लाख रह जाता है, जिससे टैक्स स्लैब के आधार पर बचत दो‑तीन गुना बढ़ सकती है।

ऑनलाइन फाइलिंग का तरीका अब पुरानी कागज़ी प्रक्रिया से कहीं आसान है। सबसे पहले इन्कम टैक्‍स ई‑फाइल पोर्टल पर रजिस्टर करें, फिर 'आधार-लिंक्ड' मोबाइल नंबर की OTP वैरिफिकेशन से प्रोफ़ाइल एक्टिवेट करें। अगला कदम ‘आइडेंटिटी वैरिफिकेशन’ (IV) है, जहाँ आप अपने आयकर फॉर्म-16, फॉर्म-16A या बैंक स्टेटमेंट को अपलोड करके आय और टैक्स डिटेल की पुष्टि कर सकते हैं। इसके बाद ‘व्राइट‑ऑफ़़’ सेक्शन में सभी उपलब्ध कटौतियों को चुनें, और ‘कम्प्यूट कर’ बटन दबाकर टैक्स देय राशि देखिए। अंत में ‘सबमिट एंड वैलिडेट’ करके रिटर्न को फॉर्म 16/ ITR‑1, ITR‑2 आदि में से अपने आय स्रोत के अनुसार चुनें और ‘फाइल’ पर क्लिक करें। एक ही बार में ‘ऑटो‑कम्प्यूटेड रिफंड एस्टिमेट’ मिल जाता है, जिससे आप तुरंत समझ सकते हैं कि कितना रिफंड मिलेगा या अतिरिक्त टैक्स देना पड़ेगा।

टैक्स प्लानिंग के लिए एक योग्य टैक्स सलाहकार या चार्टर्ड अकाउंटेंट से संपर्क करना फायदेमंद रहता है। वे वार्षिक आय‑आधारित रणनीति तैयार करते हैं, जिससे आप पहले साल में ही उचित फॉर्म‑24 और फॉर्म‑80C की योजना बना सकते हैं। एक अनुभवी प्रोफेशनल आपको 'टैक्स बचत की सीमा' के भीतर निवेश विकल्प बताता है, जैसे कि ELSS फंड्स, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF), या राष्ट्रीय पेंशन स्कीम (NPS)। इनके माध्यम से न केवल टैक्स कम होता है, बल्कि दीर्घकालिक बचत भी बढ़ती है। जब आप लगातार हर वित्तीय वर्ष में ऐसी रणनीति अपनाते हैं, तो आय की अस्थिरता कम होती है और रिटर्न फ़ाइल करने की प्रक्रिया भी तनाव‑मुक्त बनती है।

अक्सर लोग कुछ सामान्य ग़लतियों से बच नहीं पाते। सबसे बड़ी गलती है आय की कमी बताना या गलत फ़ॉर्म चुनना। यदि आपके पास कोई विदेशी आय या कर‑स्रोत पर टैक्स पहले ही कट चुका है, तो उसे ‘टैक्स क्रेडिट’ के रूप में फॉर्म में शामिल करना चाहिए, नहीं तो आप दो‑बार टैक्स के शिकार हो सकते हैं। दूसरा समस्या है दस्तावेज़ों की अनियमितता; फॉर्म‑16, फॉर्म‑26AS और बैंक स्टेटमेंट को एक फ़ोल्डर में रखकर फाइलिंग के दिन सटीक रेकॉर्ड तैयार रखें। अंत में देर‑से‑फाइल करने पर मिलने वाली रिफंड में ब्याज नहीं रहता, बल्कि अतिरिक्त जमा मूल‑धन में देरी के कारण जुर्माना लग सकता है। इन त्रुटियों से बचने के लिए फाइलिंग से पहले ‘टैक्स कैल्कुलेटर’ का प्रयोग कर अपना टैक्स अनुमान निकालें और फिर ही अंतिम रिटर्न जमा करें।

समय पर फाइल किया हुआ आयकर रिटर्न अनेक लाभ लाता है: बैंक या वित्तीय संस्थान आपके रिटर्न को आय प्रमाण के रूप में स्वीकार करते हैं, जिससे लोन, क्रेडिट कार्ड या मोबाइल कनेक्शन आसानी से मिलते हैं। साथ ही, अगर आप फ्रीलांसर या सेकंड जॉब करते हैं, तो रिटर्न में सभी स्रोतों को दर्शाने से आय के स्रोत स्पष्ट होते हैं और भविष्य में कानूनी समस्याओं से बचाव होता है। इस टैक्स फ़ाइलिंग की यात्रा को समझकर, आप न सिर्फ दण्ड से बचेंगे, बल्कि वैध तरीके से बचत भी बढ़ा पाएँगे। अब नीचे आप विभिन्न लेखों, टिप्स और केस स्टडीज़ में गहराई से देखेंगे कि कैसे हर वित्तीय वर्ष में आयकर रिटर्न को सही‑सही तैयार किया जाता है।

आयकर रिटर्न फॉर्म को सरल बनाने की नई पहल, CBDT ने दिसम्बर तक काम पूरा करने का लक्ष्य रखा

आयकर रिटर्न फॉर्म को सरल बनाने की नई पहल, CBDT ने दिसम्बर तक काम पूरा करने का लक्ष्य रखा

CBDT ने आयकर रिटर्न फॉर्म को आसान बनाने के लिए नया प्रोजेक्ट शुरू किया है और इसे दिसम्बर‑2025 तक लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है। इस साल के अस्सेसमेंट वर्ष के लिए सात अलग‑अलग फॉर्म जारी किये गये हैं, जिनमें आय‑व्यय के विभिन्न स्रोतों को कवर किया गया है। नई प्री‑फ़िल्ड फॉर्म की योजना से करदाताओं को फॉर्म भरना सरल होगा, जबकि बदलावों को समझने के लिये समय सीमा को 15 सितंबर तक बढ़ा दिया गया है। नया टैक्स रेज़िम डिफ़ॉल्ट बना है, पर करदाता पुराना रेज़िम चुन सकते हैं। यह कदम बजट‑2024 की पूंजीगत लाभ सुधारों के साथ तालमेल बिठाता है।