दोहरा शतक – क्रिकेट में 200+ रन की पारी

जब बात दोहरा शतक, क्रिकेट में एक ही पारी में 200 से अधिक रन बनाने को कहते हैं. 200 रनों की पारी की आती है, तो दिल जोर से धड़कता है। यह उपलब्धि सिर्फ नंबर नहीं, बल्कि लगातार टिके रहने, सही शॉट चयन और टीम के लिये बड़े स्कोर की दोहराव है। खेल के इतिहास में इसे अक्सर ‘हिटिंग का मील का पत्थर’ कहा जाता है। दोहरा शतक ने कई बार मैच की दिशा बदल दी है, इसलिए इस टैग के नीचे आप कई रोचक लेख देखेंगे।

क्रिकेट और दोहरा शतक का आपसी संबंध

क्रिकेट, एक टीम‑आधारित खेल है जहाँ बैट्समैन रन बनाते हैं का मूल उद्देश्य जितना हो सके अधिक रन बनाना है, और दोहरा शतक इस लक्ष्य की चरम सीमा है। टेस्ट, वनडे या T20 में शर्तें अलग होती हैं, पर दोहरा शतक अक्सर टेस्ट या वनडे में देखी जाती है, जहाँ पारी को लंबा खींचने का मौका मिलता है। इस खेल में धैर्य, शारीरिक फिटनेस और रणनीतिक सोच की जरूरत होती है—यही तीन स्तंभ दोहरा शतक को संभव बनाते हैं।

जब किसी खिलाड़ी से दोहरा शतक का उल्लेख किया जाता है, तो अक्सर इंडियन क्रिकेट टीम, भारत का राष्ट्रीय क्रिकेट प्रतिनिधित्व करने वाली टीम के नाम सामने आते हैं। भारत ने पिछले दो दशकों में कई दोहरा शतक देखे हैं, और हर नया रिकॉर्ड देशभक्तों को खुशी देता है। भारतीय बल्लेबाज़ों की तकनीक, मैदान पर समझ और कोचिंग सिस्टम ने इस उपलब्धि को अक्सर सुगम बनाया है। इसलिए इस टैग में आप देखेंगे कि कैसे भारतीय टीम ने अपने मैदानों पर दोहरा शतक को अपनी ताकत बनाया।

दोहरा शतक का अधिकांश अवसर टेस्ट मैच, क्रिकेट का सबसे लंबा फॉर्मेट, जहाँ पारी कई दिन तक चलती है में मिलते हैं। टेस्ट में बल्लेबाज़ को समय मिलता है, पिच के बदलाव को समझते हुए अपनी पारी को आगे बढ़ाने का। इसके अलावा वनडे में 50 ओवर की सीमा के भीतर भी दोहरा शतक संभव हो सकता है, जबकि T20 में यह बहुत ही दुर्लभ होता है क्योंकि ओवर सीमित होते हैं। इसलिए दोहरा शतक का मंच चुनना, खेल के फॉर्मेट और परिस्थितियों को समझना अनिवार्य है।

तकनीकी पहलुओं की बात करें तो दोहरा शतक बनाने के लिए खिलाड़ी को चार प्रमुख गुणों की जरूरत होती है: (1) निरंतर फोकस—हर गेंद पर ध्यान देना, (2) शॉट चयन—कठिन पिच पर भी जोखिम कम करना, (3) शारीरिक स्टैमिना—लंबी पारी में थकान से बचना, (4) रणनीतिक खेल—टेकर और क्रीज़ को पढ़ना। ये गुण न सिर्फ दोहरा शतक की संभावना बढ़ाते हैं, बल्कि टीम के लिए भी स्थिरता लाते हैं। जब आप प्रत्येक लेख पढ़ेंगे, तो यह समझ पाएँगे कि कैसे ये गुण अलग‑अलग बल्लेबाज़ों में निहित होते हैं।

इतिहास में कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने दोहरा शतक बनाया और अपनी पहचान बनाई। 2002 में वेंकटेश राव ने पहले भारतीय दोहरा शतक किया, उसके बाद विराट कोहली, रतन वनवाली, और हाल ही में शारद लोहिया ने भी इस मील के पत्थर को छुआ। प्रत्येक खिलाड़ी की कहानी अलग होती है—कुछ ने तेज़ पिच पर आक्रमण किया, तो कुछ ने टिके‑टिके खेला। इन कहानियों में हमने देखा कि किस तरह टीम की रणनीति, मौसम, पिच कॉन्डिशन और व्यक्तिगत फॉर्म सभी मिलकर दोहरा शतक को सम्भव बनाते हैं। इन लेखों में आप उन कहानियों को विस्तार से पढ़ सकते हैं, जिससे आपके अपने खेल या विश्लेषण में नई नजरिया मिलेगा।

अब आप तैयार हैं इस टैग में छिपे हुए खज़ानों को एक्सप्लोर करने के लिए—दोहरा शतक के विभिन्न पहलू, खिलाड़ी प्रोफ़ाइल, मैच विश्लेषण और भविष्य की संभावनाओं पर लिखी गई कवरेज। नीचे की सूची में प्रत्येक लेख आपको इस रोमांचक उपलब्धि के नए‑नए पहलू दिखाएगा, चाहे आप एक सामान्य दर्शक हों या क्रिकेट का गहरा शौकीन। पढ़िए, सीखिए और अपनी समझ को मज़बूत बनाइए।

नारायण जागदेसन के 197 रन: ड्यूलप ट्रॉफी 2025 सेमी‑फ़ाइनल में दोहरा शतक के नज़दीक की दर्दनाक सफ़लता

नारायण जागदेसन के 197 रन: ड्यूलप ट्रॉफी 2025 सेमी‑फ़ाइनल में दोहरा शतक के नज़दीक की दर्दनाक सफ़लता

ड्यूलप ट्रॉफी 2025 के सेमी‑फ़ाइनल में साउथ ज़ोन का विकेट‑कीपर‑बेट्समैन नारायण जागदेसन ने 352 डिलीवरी पर 197 रन बनाकर टीम को 536 का मजबूत पहले इनिंग से जोड़ दिया। 16 चौके और 2 छक्के मारते हुए उन्होंने दोहरा शतक से मात्र तीन रनों की दूरी पर रह कर दिल तोड़ दिया। रन‑आउट का कारण निशांत सिंधु का फील्डिंग था, जिससे उनका सपना ‘मल्टी‑डबल‑सेंचुरी’ की कंपनी में शामिल होने से टल गया।