जब हम ग्रे मार्केट प्रीमियम, किसी सिक्योरिटी या प्रोडक्ट की आधिकारिक लॉन्च से पहले गैरेज मार्केट में लगने वाली अतिरिक्त कीमत. Also known as प्री-इश्यू प्रीमियम, it reflects मार्केट की अपेक्षा और शुरुआती मांग को। इस परिभाषा को समझने के लिए दो पड़ोसी अवधारणाओं को देखें: वित्तीय बाजार, इक्विटी, बॉन्ड, कमोडिटी व डेरिवेटिव्स का समुचित परस्पर क्रिया मंच और शेयर ट्रेडिंग, स्टॉक एक्सचेंज पर सूचकांक, लॉट व कीमतों का वास्तविक समय लेन‑देन. ये तीनों (ग्रे मार्केट प्रीमियम, वित्तीय बाजार, शेयर ट्रेडिंग) एक‑दूसरे को प्रभावित करते हैं; जैसे‑कि ग्रे मार्केट प्रीमियम अक्सर IPO प्रीमियम को सेट करता है और शुरुआती ट्रेडिंग वॉल्यूम को बढ़ावा देता है।
इंडियन शेयर बाजार में हालिया खबरों ने इस प्रीमियम को कई बार उजागर किया है। उदाहरण के तौर पर, IPO प्रीमियम, नया शेयर सार्वजनिक होने से पहले निवेशकों द्वारा लगाए गए अतिरिक्त मूल्य को अक्सर ग्रे मार्केट में देखी गई डिमांड से अनुमानित किया जाता है। LG Electronics India का ₹11,607 करोड़ IPO, या Sensex‑Nifty के उतार‑चढ़ाव से जुड़ी US‑China ट्रेड वार रिपोर्ट, दोनों ही ग्रे मार्केट प्रीमियम की दिशा तय करती हैं। जब कवरेज में दिखता है कि ट्रेडर्स ने प्री‑इश्यू शेयरों को 10‑15 प्रतिशत अतिरिक्त पर खरीदा, तो इस डेटा का प्रयोग विश्लेषकों द्वारा भविष्य के स्टॉक प्रदर्शन को प्रेडिक्ट करने में किया जाता है। ग्रे मार्केट प्रीमियम दो मुख्य एट्रिब्यूट रखता है: पहला, **डिमांड‑साइड प्रीमियम**, जो निवेशकों की शुरुआती इच्छा को दर्शाता है; दूसरा, **स्प्रेड‑साइड प्रीमियम**, जो बाजार में अस्थिरता और लिक्विडिटी की कमी से जुड़ा होता है। इन एट्रिब्यूट्स के मान सीधे‑सिधे जोखिम प्रबंधन, पोर्टफ़ोलियो अलोकेशन और टैक्टिकल ट्रेडिंग स्ट्रेटेजी में उपयोग होते हैं। उदाहरण के तौर पर, जब US‑China टैरिफ‑वॉर की खबरें इन्फ्लुएंस करती हैं, तो ग्रे मार्केट प्रीमियम घट सकता है, जिससे प्री‑इश्यू शेयरों की कीमतें नीचे गिर सकती हैं। इसके उलट, जब कोई बड़े कंपनी के IPO की घोषणा होती है — जैसे LG का IPO — तो प्रीमियम अक्सर बढ़ता है, जिससे निवेशकों को शुरुआती एंट्री पर फायदेमंद अवसर मिलता है। यहां तक कि गैर‑वित्तीय खबरें भी ग्रे मार्केट प्रीमियम के साथ अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हो सकती हैं। क्रिकेट, योगा, या फिल्म उद्योग में बड़े इवेंट्स — जैसे ऑस्ट्रेलिया बनाम भारत का ODI मैच या ‘ड्रैगन’ की बॉक्स‑ऑफ़िस सफलता — अक्सर स्पॉन्सरशिप, विज्ञापन और ब्रांडिंग में निवेश को बढ़ाते हैं, जो संबंधित स्टॉक्स के ग्रे मार्केट प्रीमियम को ऊपर ले जा सकता है। इस तरह के क्रॉस‑ओवर एफ़ेक्ट को पहचानना आपके निवेश दृष्टिकोण को व्यापक बनाता है। ग्रे मार्केट प्रीमियम को समझने का सबसे आसान तरीका है “सेंटरल ट्रेंड + एट्रिब्यूट = प्रेडिक्शन” फ़ॉर्मूला अपनाना। यहाँ सेंटरल ट्रेंड अक्सर आर्थिक संकेतकों (जैसे RBI की नीति, वैश्विक टैक्स नीति) पर आधारित होता है, एट्रिब्यूट में ऊपर बताए गये दो प्रीमियम घटक शामिल होते हैं, और प्रेडिक्शन में आप तय करते हैं कि कोई नई सिक्योरिटी या प्रॉडक्ट कब, कैसे, और किस कीमत पर लॉन्च होगा। हमारे नीचे दिए गए लेखों में इस फ्रेमवर्क के कई उदाहरण मिलेंगे: US‑China ट्रेड वॉर के कारण Sensex की गिरावट, LG के IPO पर मूल्यांकन, और विभिन्न खेल व मनोरंजन इवेंट्स की आर्थिक प्रभावशीलता। आप देखेंगे कि कैसे ग्रे मार्केट प्रीमियम विभिन्न क्षेत्रों में परिलक्षित होता है और कैसे आप इसे अपने निवेश‑निर्णय में शामिल कर सकते हैं। अब आगे पढ़िए और जानिए कौन‑से संकेतक आपको आगे के राइड में मदद करेंगे।
Indiqube Spaces का ₹700 करोड़ का IPO पहले ही दिन 87% सब्सक्राइब हो गया। रिटेल निवेशकों ने जबरदस्त रुचि दिखाई, जबकि ग्रे मार्केट प्रीमियम ₹23-24 तक पहुंच गया। कंपनी ने 29 इन्वेस्टर से एंकर फंडिंग के जरिए ₹314.3 करोड़ पहले ही जुटा लिए हैं। लिस्टिंग 30 जुलाई को होगी।