जब बात लक्ष्मि, हिंदू धर्म की समृद्धि, सौभाग्य और धन की देवी. Also known as श्री लक्ष्मी, वह दीपावली, वैष्णव आचार और घर‑घर की पूजा में प्रमुख भूमिका निभाती है।
लक्ष्मि का मूल कार्य समृद्धि को आकर्षित करना है, और इसका अर्थ केवल आर्थिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक संतुलन तक विस्तारित है। धन, भौतिक संपदा या आर्थिक प्रचुरता. Also called संपत्ति, धन अक्सर लक्ष्मि के आशीर्वाद से जुड़ा माना जाता है। जब घर में लक्ष्मि का वास होता है, तो व्यापारियों को बेहतर बिक्री, किसानों को फसल में भरपूर उपज और छात्रों को अच्छे अंक मिलते हैं।
समृद्धि की भावना को समृद्धि, सभी क्षेत्रों में प्रगति और भरपूरता. Alternate name समृद्धि से भी जानी जाती है। यह सिर्फ धन नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, ज्ञान और सामाजिक सम्मान का भी समावेश है। लक्ष्मि की पूजा के दौरान माँ के हाथ में धूप, कमल और कुंती (पत्ते) रखे जाते हैं, जिससे इन सभी क्षेत्रों में संतुलन बना रहे।
विष्णु के साथ लक्ष्मि का गठबंधन विष्णु, सृष्टि के पालक और संरक्षण करने वाले देवता. Alternate name श्रीनिवास भी है। विष्णु के अधिष्ठान पर लक्ष्मि की मौजूदगी ब्रह्मांडीय संतुलन स्थापित करती है। विष्णु के साथ उनका मिलाप "धन-धर्म" को दर्शाता है – जहाँ विष्णु प्रभु के रूप में रखरखाव करते हैं, वहीं लक्ष्मि समृद्धि लाती है। यह त्रिपक्षीय संबंध (लक्ष्मि – विष्णु – समस्त सृष्टि) आर्थिक स्थिरता, नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक उन्नति को आपस में जोड़ता है।
इन कनेक्शनों को समझने से आप अपनी दैनिक योजना, व्यवसायिक रणनीति या व्यक्तिगत लक्ष्यों में लक्ष्मि के सिद्धांतों को लागू कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, व्यापार में लाभ के साथ साथ नैतिकता बनाए रखना, घर में शांति और एकता को प्राथमिकता देना, और अपने काम में संतुलन बनाकर आर्थिक प्रगति हासिल करना। यही वह कारण है कि कई सफल उद्यमी और कलाकार लक्ष्मि को अपने घर के मुख्य द्वार पर रखते हैं – क्योंकि वह सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत है। अब आप इस पेज पर आगे देखेंगे कि विभिन्न लेखों में लक्ष्मि कैसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रकट होती है – चाहे वह वित्तीय समाचार, आध्यात्मिक मार्गदर्शन, या सांस्कृतिक त्योहार के विशद विवरण हों। इन लेखों को पढ़कर आप न केवल लक्ष्मि के प्रतीक के बारे में गहरा ज्ञान प्राप्त करेंगे, बल्कि अपने जीवन में उनके प्रभाव को पहचानने के भी उपकरण मिलेंगे। चलिए, आगे बढ़ते हैं और देखते हैं कि कैसे लक्ष्मि की विभिन्न पहलुओं को हमारे दैनिक अनुभवों में बुनते हैं।
दीवाली 2025, 18‑23 अक्टूबर, भारत में राष्ट्रीय अवकाश, प्रमुख तिथियों व रीति‑रिवाजों के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक असर.