जब हम पुण्यतिथि, एक ऐसी तारीख जो जन्म या मृत्यु के समान दिन पर पड़ती है और अक्सर श्रद्धा, स्मृति या कर्तव्यभाव से जुड़ी होती है. Also known as स्मृति दिवस, it परिवार और समुदाय में विशेष अनुष्ठान, प्रार्थना और यादगार समारोहों का अवसर बनती है। साथ ही शोक, वह भावना जो किसी प्रियजन के गुजर जाने पर उभरती है और स्मृति, भूल न जाएँ ऐसी प्रतिबद्धता, अक्सर फोटो, कथा या पूजा के रूप में भी इस दिन के साथ गहरा संबंध रखते हैं।
पुण्यतिथि का पता लगाने के लिए धार्मिक कैलेंडर, हिंदू पंचांग, शुब्हा या ग्रेगोरियन कैलेंडर के तालमेल से बना उपकरण मददगार होता है। पंचांग में तिथि, नक्षत्र और योग देख कर आप वही दिन पहचान सकते हैं जिसमें आपके दादा‑दादी या गुरु की पुण्यतिथि आती है। जब आप इस तिथि को पहचान लेते हैं, तो अनुष्ठान (जैसे प्रसाद वितरित करना, छत्र‑छाया देना) का समय सेट हो जाता है। इस तरह पुण्यतिथि न केवल व्यक्तिगत स्मृति को सशक्त बनाती है, बल्कि सामुदायिक जुड़ाव को भी बढ़ा देती है।
एक आम गलती यह है कि लोग केवल ग्रेगोरियन तिथि को देख कर मानते हैं कि यह ही पुण्यतिथि है। असल में नक्षत्र, चंद्रमा की स्थितियों से जुड़ी सात‑सात सितारों की क्रमावली और योग, दिन के विशेष अंतरिक्षीय संयोजन दोनों को मिलाकर ही सटीक तिथि मिलती है। इस कारण से अधिकांश मंदिर और धार्मिक संस्थान पंचांग के आधार पर ही पुजारी‑भक्त को मार्गदर्शन देते हैं।
अब बात करें अनुष्ठानों की, तो पुण्यतिथि पर कई प्रकार के कार्यक्रम होते हैं। सबसे लोकप्रिय है धूप‑दीप अर्पण, देवताओं को सम्मान दिखाने के लिये धूप और दीप जलाना। इसके साथ ही पुष्प अर्पण, जीवित स्मृति के रूप में फूल देना और भोजन दान, भक्तों या जरूरतमंदों को भोजन प्रदान करना भी किया जाता है। इन सबका बुनियादी उद्देश्य शोक को शांति में बदलना, स्मृति को जीवित रखना और अनन्त में संपर्क स्थापित करना है।
यात्रा या सामाजिक मीडिया का प्रयोग भी आज के समय में एक नया पहलू बन गया है। लोग पुण्यतिथि पर वीडियो कॉल या लाइव प्रसाद प्रसारण करके दूर रहने वाले रिश्तेदारों को भी शामिल कर लेते हैं। इससे शोक के समय एकजुटता की भावना और भी गहरी होती है। साथ ही कई घरों में धर्म ग्रंथों का पाठ, ज्योतिष या शास्त्रों की पठन‑पाठन प्रक्रिया किया जाता है, जिससे आध्यात्मिक लाभ मिलता है। यह आधुनिक तकनीक और पारम्परिक रीति‑रिवाजों का संगम दर्शाता है।
पुण्यतिथि के बाद का कुछ समय भी खास होता है। अक्सर लोग इस दिन के अगले दिन या दो‑तीन दिनों में व्रत, एक निश्चित समय तक भोजन‑पेय से परहेज करना या दान, धर्म‑शास्त्र में निर्धारित सामाजिक कार्य करते हैं। ये कदम शोक की भावनाओं को सकारात्मक कार्रवाई में बदल देते हैं। आपका छोटा योगदान भी सामाजिक संतुलन में बड़ा बदलाव लाता है।
ध्यान देने योग्य एक बात यह है कि पुण्यतिथि मनाते समय उचित स्वास्थ्य‑सुरक्षा उपाय रखें। यदि आप बड़े समूह में सभा कर रहे हैं, तो जगह की सफाई, वेंटिलेशन और खानपान की स्वच्छता पर खास ध्यान दें। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, बल्कि पूजा‑स्थल की शुद्धता को भी बनाए रखता है।
स्मृति के तौर पर कई लोग इस अवसर पर फोटो एलबम, पुरानी तस्वीरें या डिजिटल स्लाइडशो तैयार करते हैं। ये दृश्य स्मृति को फिर से जीवंत बनाते हैं और परिवार के छोटे बच्चों को अपने पूर्वजों से जोड़ते हैं। कभी‑कभी इस तरह के एलबम को स्थानीय अभिलेखागार में भी सहेजा जाता है, जिससे भविष्य में इतिहासकारों को मदद मिलती है।
सभी पहलुओं को मिलाकर देखें तो पुण्यतिथि सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक सामाजिक‑धार्मिक प्रथा है जो शोक को शांति, स्मृति को सम्मान और अनुष्ठान को आशा में बदल देती है। इस लेख में हमने मुख्य तत्वों — शोक, स्मृति, अनुष्ठान, धार्मिक कैलेंडर और आधुनिक तकनीक — को जोड़ा है ताकि आप अगले पुण्यतिथि को पूरी समझ के साथ मनाएँ।
अब नीचे आप देखते हैं कई लेख जो विभिन्न पहलुओं को विस्तार से छूते हैं — चाहे वह तिथि‑गणना हो, पूजा‑विधि हो या शोक‑समीक्षा। ये लेख आपके लिये एक उपयोगी संग्रह बनेंगे, जिससे आप हर पुण्यतिथि में सही तरीका अपना सकें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 जनवरी 2025 को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने राजघाट पर एक समारोह में भाग लिया और सोशल मीडिया पर एक संदेश साझा किया। यह दिन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब लोग गांधी जी और भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों को याद करते हैं। महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिरला हाउस में की थी।